वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025: सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और इसके प्रभाव

वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025: सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और इसके प्रभाव

वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025: सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और इसके प्रभाव

परिचय

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025, भारत में हाल के दिनों में सबसे विवादास्पद कानूनों में से एक बन गया है। इस अधिनियम ने न केवल मुस्लिम समुदाय के बीच बल्कि राजनेताओं, कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच भी तीखी बहस को जन्म दिया है। 20 मई, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। इस लेख में हम इस सुनवाई के प्रमुख बिंदुओं, याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार के तर्कों, और इस कानून के व्यापक प्रभावों पर चर्चा करेंगे।

वक्फ क्या है?

वक्फ इस्लामी कानून के तहत एक ऐसी संपत्ति होती है, जो धार्मिक, शैक्षिक या सामाजिक कल्याण के लिए समर्पित की जाती है। यह संपत्ति हमेशा के लिए अल्लाह को समर्पित मानी जाती है और इसका उपयोग केवल निर्धारित उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। भारत में, वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद द्वारा किया जाता है। इन संपत्तियों में मस्जिदें, कब्रिस्तान, स्कूल, और अन्य सामुदायिक सुविधाएं शामिल हैं।

वक्फ अधिनियम, 1995 ने इन संपत्तियों के प्रबंधन और संरक्षण के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान किया था, लेकिन 2025 के संशोधन ने इस ढांचे में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए, जिन्हें लेकर विवाद शुरू हुआ।

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025: प्रमुख प्रावधान

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 5 अप्रैल, 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद अधिसूचित किया गया था। इस कानून ने वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और उनकी स्थिति को लेकर कई महत्वपूर्ण बदलाव प्रस्तावित किए। कुछ प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:

  1. वक्फ-बाय-यूजर की अवधारणा को हटाना: यह प्रावधान उन संपत्तियों को प्रभावित करता है, जो लंबे समय से वक्फ के रूप में उपयोग की जा रही थीं, भले ही उनके पास औपचारिक पंजीकरण न हो। नए कानून के तहत ऐसी संपत्तियों को वक्फ के रूप में मान्यता देना मुश्किल हो सकता है।
  2. वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति: इस प्रावधान ने सबसे अधिक विवाद खड़ा किया है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं का मानना है कि यह मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करता है।
  3. वक्फ संपत्तियों का डिनोटिफिकेशन: नए कानून के तहत, जिला कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि वह यह जांच करे कि क्या कोई संपत्ति सरकारी भूमि है। यदि यह सरकारी भूमि पाई जाती है, तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी।
  4. पुरातात्विक स्मारकों का वक्फ स्थिति से हटना: यदि कोई संरचना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित की जाती है, तो वह अपनी वक्फ स्थिति खो देगी। यह प्रावधान जामा मस्जिद, संभल जैसी ऐतिहासिक संरचनाओं को प्रभावित कर सकता है।
  5. वक्फ संपत्तियों पर विवाद की स्थिति में सरकारी हस्तक्षेप: नए कानून के तहत, कोई भी व्यक्ति या ग्राम पंचायत वक्फ संपत्ति की स्थिति को चुनौती दे सकती है, जिसके बाद एक सरकारी अधिकारी इस पर निर्णय लेगा। यह प्रक्रिया याचिकाकर्ताओं द्वारा “अनुचित” मानी जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: 20 मई, 2025

20 मई, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार के तर्कों को सुना। सुनवाई का मुख्य उद्देश्य यह तय करना था कि क्या इस कानून के कुछ प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाने की आवश्यकता है।

याचिकाकर्ताओं के तर्क

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन, सलमान खुर्शीद और हुजैफा अहमदी ने तर्क प्रस्तुत किए। उनके प्रमुख तर्क इस प्रकार थे:

  1. मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर अतिक्रमण: कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि यह कानून मुस्लिम समुदाय की वक्फ संपत्तियों का “रेंगता अधिग्रहण” (creeping acquisition) है। उन्होंने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक मामलों के प्रबंधन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  2. वक्फ-बाय-यूजर की अवधारणा का अंत: सिब्बल ने बताया कि 1923 से पहले वक्फ-बाय-यूजर संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य नहीं था। हालांकि, 2025 के संशोधन ने इस अवधारणा को पूरी तरह समाप्त कर दिया, जिससे ऐतिहासिक मस्जिदों और कब्रिस्तानों की वक्फ स्थिति खतरे में पड़ सकती है।
  3. संरक्षित स्मारकों का मुद्दा: याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यदि कोई संरचना ASI द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित की जाती है, तो वह अपनी वक्फ स्थिति खो देगी। इससे धार्मिक पूजा और प्रथाओं के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं। सिब्बल ने जामा मस्जिद, संभल का उदाहरण दिया, जो इस प्रावधान से प्रभावित हो सकती है।
  4. संवैधानिकता पर सवाल: याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह कानून समानता और गरिमा के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। सिब्बल ने तर्क दिया कि यह कानून “संपत्ति को बिना मुआवजे के अधिग्रहित करने” का एक तरीका है, जो संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है।
  5. टुकड़ों में सुनवाई पर आपत्ति: सिब्बल और सिंघवी ने केंद्र सरकार के उस अनुरोध का विरोध किया जिसमें सुनवाई को तीन मुद्दों तक सीमित करने की मांग की गई थी। उन्होंने कहा कि यह मामला संवैधानिक सवालों से जुड़ा है और इसे “टुकड़ों में” (piecemeal) नहीं सुना जा सकता।

केंद्र सरकार की स्थिति

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क प्रस्तुत किए। उन्होंने निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया:

  1. कानून की संवैधानिकता: केंद्र सरकार ने 25 अप्रैल, 2025 को 1,332 पन्नों का एक हलफनामा दाखिल किया था, जिसमें इस कानून की संवैधानिकता का बचाव किया गया। मेहता ने तर्क दिया कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून को संवैधानिक माना जाता है जब तक कि उसकी असंवैधानिकता स्पष्ट रूप से सिद्ध न हो।
  2. सुनवाई को सीमित करने की मांग: मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि सुनवाई को तीन मुद्दों तक सीमित किया जाए:
    • क्या कोर्ट द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों को डिनोटिफाई किया जा सकता है?
    • वक्फ-बाय-यूजर की वैधता।
    • वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति।
  3. अंतरिम रोक का विरोध: केंद्र सरकार ने इस कानून पर किसी भी “पूर्ण रोक” (blanket stay) का विरोध किया, यह तर्क देते हुए कि यह संसद द्वारा पारित एक वैध कानून है।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की टिप्पणियां

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने सुनवाई के दौरान कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:

  1. संवैधानिकता का अनुमान: CJI गवई ने कहा कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून को संवैधानिक माना जाता है, और अदालत तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकती जब तक कि कोई “स्पष्ट मामला” (glaring case) न बनाया जाए। उन्होंने कपिल सिब्बल से कहा कि अंतरिम राहत के लिए एक मजबूत मामला प्रस्तुत करना होगा।
  2. पंजीकरण का इतिहास: CJI ने सवाल उठाया कि क्या 1913 से 2013 तक के वक्फ अधिनियमों में पंजीकरण अनिवार्य था। सिब्बल ने जवाब दिया कि 1923 से पहले पंजीकरण अनिवार्य नहीं था, लेकिन बाद में इसे अनिवार्य कर दिया गया।
  3. धार्मिक अधिकारों पर प्रभाव: CJI ने पूछा कि क्या ASI द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित करने से पूजा या धार्मिक प्रथाओं के अधिकार प्रभावित होंगे। सिब्बल ने पुष्टि की कि यह प्रावधान धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  4. समय सीमा: CJI ने याचिकाकर्ताओं को अपनी दलीलें 4 बजे तक समाप्त करने का निर्देश दिया, ताकि अन्य पक्षों को भी सुनवाई का अवसर मिले।

सामाजिक और संवैधानिक प्रभाव

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 ने भारत में धार्मिक और सामाजिक ताने-बाने पर गहरे सवाल उठाए हैं। कुछ प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं:

  1. मुस्लिम समुदाय का विश्वास: याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करता है। वक्फ संपत्तियां न केवल धार्मिक महत्व की हैं, बल्कि सामुदायिक कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
  2. संवैधानिकता का सवाल: यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार) के तहत मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है। यदि यह सिद्ध हो जाता है कि यह कानून इन अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो इसे असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है।
  3. पुरातात्विक और धार्मिक स्थलों का टकराव: ASI द्वारा संरक्षित स्मारकों और वक्फ संपत्तियों के बीच टकराव एक जटिल मुद्दा है। यह कानून ऐतिहासिक मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों की स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
  4. राजनीतिक विवाद: इस कानून ने राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहस को जन्म दिया है। जहां केंद्र सरकार इसे वक्फ प्रबंधन में पारदर्शिता लाने का प्रयास बता रही है, वहीं विपक्षी दल इसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण कदम मान रहे हैं।

केरल की याचिका

केरल सरकार ने भी इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। राज्य का तर्क है कि केरल में मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस कानून के प्रभावों से चिंतित है। केरल ने कहा कि इस कानून के कई प्रावधान “अनुचित” हैं और उनकी संवैधानिक वैधता संदिग्ध है। यह याचिका इस मामले में एक नया आयाम जोड़ती है, क्योंकि यह न केवल धार्मिक बल्कि क्षेत्रीय मुद्दों को भी उठाती है।

निष्कर्ष

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई भारत के संवैधानिक और सामाजिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह मामला न केवल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन से संबंधित है, बल्कि यह धार्मिक स्वतंत्रता, समानता और संवैधानिकता जैसे बड़े सवालों को भी छूता है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जबकि केंद्र सरकार इसे एक सुधारवादी कदम के रूप में प्रस्तुत कर रही है।

20 मई, 2025 की सुनवाई में कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया, लेकिन CJI बी.आर. गवई ने स्पष्ट किया कि संसद द्वारा पारित कानून को संवैधानिक माना जाता है जब तक कि उसकी असंवैधानिकता स्पष्ट रूप से सिद्ध न हो। इस मामले की अगली सुनवाई और सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला इस कानून के भविष्य को निर्धारित करेगा।

यह मामला न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस जटिल मुद्दे पर कैसे संतुलन बनाता है और क्या यह कानून संवैधानिक जांच में खरा उतर पाता है।

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