समायोजित सकल राजस्व (AGR) विवाद: सुप्रीम कोर्ट का फैसला और टेलीकॉम सेक्टर पर इसका

समायोजित सकल राजस्व (AGR) विवाद: सुप्रीम कोर्ट का फैसला और टेलीकॉम सेक्टर पर इसका

समायोजित सकल राजस्व (AGR) विवाद: सुप्रीम कोर्ट का फैसला और टेलीकॉम सेक्टर पर इसका प्रभाव

परिचय

भारतीय टेलीकॉम उद्योग पिछले कुछ वर्षों से कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें से एक सबसे बड़ा विवाद समायोजित सकल राजस्व (Adjusted Gross Revenue – AGR) से संबंधित है। यह विवाद टेलीकॉम कंपनियों और भारत सरकार के बीच लंबे समय से चला आ रहा है, और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। इस लेख में, हम AGR विवाद के इतिहास, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले, और इसके वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल, और टाटा टेलीसर्विसेज जैसी प्रमुख टेलीकॉम कंपनियों पर प्रभाव को विस्तार से समझेंगे। यह लेख आपके ब्लॉग kishanbaraiya.com के पाठकों के लिए एक व्यापक और जानकारीपूर्ण विश्लेषण प्रदान करेगा।

AGR क्या है?

समायोजित सकल राजस्व (AGR) टेलीकॉम कंपनियों की वह आय है, जिस पर सरकार लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (Spectrum Usage Charges – SUC) की गणना करती है। भारत में टेलीकॉम ऑपरेटरों को अपनी AGR का एक निश्चित प्रतिशत (आमतौर पर 8% लाइसेंस शुल्क और 3-5% स्पेक्ट्रम शुल्क के रूप में) सरकार को भुगतान करना होता है। लेकिन AGR की परिभाषा को लेकर टेलीकॉम कंपनियों और दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications – DoT) के बीच लंबे समय से विवाद रहा है।

टेलीकॉम कंपनियों का तर्क था कि AGR में केवल उनके मुख्य टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय शामिल होनी चाहिए। दूसरी ओर, DoT का दावा था कि AGR में कंपनियों की कुल आय, जिसमें गैर-टेलीकॉम स्रोतों (जैसे कि डिविडेंड, किराया, और हैंडसेट बिक्री से आय) भी शामिल होनी चाहिए। इस असहमति ने एक लंबी कानूनी लड़ाई को जन्म दिया, जो 1999 की राष्ट्रीय टेलीकॉम नीति (National Telecom Policy – NTP) से शुरू हुई और 2019 में सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले तक चली।

AGR विवाद का इतिहास

AGR विवाद की शुरुआत 1999 में हुई, जब सरकार ने टेलीकॉम कंपनियों को एक निश्चित लाइसेंस शुल्क के बजाय राजस्व-आधारित शुल्क प्रणाली में स्थानांतरित करने की अनुमति दी। इस नीति के तहत, कंपनियों को अपनी AGR का एक हिस्सा सरकार को देना था। लेकिन AGR की परिभाषा को लेकर असहमति के कारण, टेलीकॉम कंपनियों और DoT के बीच विवाद शुरू हो गया।

2005 में, टेलीकॉम कंपनियों ने इस मुद्दे को टेलीकॉम डिस्प्यूट सेटलमेंट एंड अपीलेट ट्रिब्यूनल (TDSAT) के सामने रखा। 2015 में, TDSAT ने टेलीकॉम कंपनियों के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि AGR में केवल टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय शामिल होनी चाहिए। लेकिन DoT ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

24 अक्टूबर 2019 को, सुप्रीम कोर्ट ने DoT के पक्ष में फैसला सुनाया और AGR की व्यापक परिभाषा को बरकरार रखा, जिसमें कंपनियों की कुल आय शामिल थी। इस फैसले ने टेलीकॉम उद्योग को बड़ा झटका दिया, क्योंकि कंपनियों को पिछले 14 वर्षों के बकाया, ब्याज, और जुर्माने सहित भारी राशि का भुगतान करना था। सुप्रीम कोर्ट ने कंपनियों को तीन महीने के भीतर 1.47 लाख करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला (2025)

17 मई 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर AGR विवाद पर सुनवाई की, जिसमें वोडाफोन आइडिया और भारती एयरटेल ने ब्याज और जुर्माने की छूट की मांग की थी। ये कंपनियां तर्क दे रही थीं कि DoT ने AGR की गणना में “महत्वपूर्ण त्रुटियां” की हैं और पहले से किए गए भुगतानों को ध्यान में नहीं लिया गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं को “हैरान करने वाला” और “गलत” करार देते हुए खारिज कर दिया।

इस फैसले ने टेलीकॉम कंपनियों की उम्मीदों को बड़ा झटका दिया, क्योंकि इससे उनकी कानूनी लड़ाई के रास्ते लगभग बंद हो गए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 2019 के फैसले में निर्धारित AGR बकाया की कोई पुनर्गणना नहीं होगी और कंपनियों को 2031 तक 10% वार्षिक किस्तों में बकाया चुकाना होगा।

प्रमुख बिंदु:

 

वोडाफोन आइडिया: DoT ने वोडाफोन आइडिया के लिए 58,254 करोड़ रुपये के AGR बकाया का अनुमान लगाया, जबकि कंपनी का अपना अनुमान 21,533 करोड़ रुपये था। कंपनी ने अब तक 7,900 करोड़ रुपये का भुगतान किया है।

भारती एयरटेल: DoT ने एयरटेल के लिए 43,980 करोड़ रुपये के बकाया का अनुमान लगाया, जबकि एयरटेल का अनुमान 13,004 करोड़ रुपये था। कंपनी ने 18,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया है, जिसमें 5,000 करोड़ रुपये अस्थायी भुगतान के रूप में शामिल हैं।

टाटा टेलीसर्विसेज: DoT ने टाटा टेलीसर्विसेज के लिए 16,798 करोड़ रुपये के बकाया का अनुमान लगाया, जबकि कंपनी का अनुमान 2,197 करोड़ रुपये था।

 

टेलीकॉम कंपनियों पर प्रभाव

1. वोडाफोन आइडिया

वोडाफोन आइडिया, जो पहले से ही 1.8 लाख करोड़ रुपये के कर्ज से जूझ रही है, इस फैसले से सबसे अधिक प्रभावित हुई है। कंपनी ने अपनी याचिका में कहा था कि AGR बकाया का भुगतान करने की स्थिति में वह दिवालिया हो सकती है, जिससे 300 मिलियन ग्राहकों को प्रभावित होने और लाखों नौकरियों के नुकसान का खतरा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कंपनी की वित्तीय स्थिति को और जटिल कर दिया है, और अब इसके पास सरकार से राहत मांगने के अलावा कोई बड़ा विकल्प नहीं बचा है।

वोडाफोन आइडिया के शेयरों में फैसले के बाद भारी गिरावट देखी गई, जो 4.16% तक गिरकर 8.29 रुपये प्रति शेयर तक पहुंच गए। कंपनी ने कहा कि वह कर्ज जुटाने की कोशिश कर रही है, लेकिन निवेशकों को उसकी सटीक देनदारी की स्पष्टता चाहिए।

2. भारती एयरटेल

भारती एयरटेल, जो वित्तीय रूप से वोडाफोन आइडिया की तुलना में बेहतर स्थिति में है, ने भी AGR बकाया में छूट की मांग की थी। कंपनी ने पिछले 10 वर्षों में 75,000 करोड़ रुपये लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क के रूप में और 2024-25 में 22,000 करोड़ रुपये जीएसटी के रूप में भुगतान किया है। फिर भी, सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कंपनी की उम्मीदों को झटका दिया है। एयरटेल के शेयरों में मामूली गिरावट (0.51%) देखी गई, जो 1,705 रुपये प्रति शेयर पर कारोबार कर रहे थे।

एयरटेल ने तर्क दिया कि AGR बकाया के कारण उसे अपनी नेटवर्क विस्तार योजनाओं और 5G जैसी नई तकनीकों में निवेश करने में बाधा आ रही है। कंपनी ने ग्रामीण कवरेज, फाइबर नेटवर्क, और डेटा सेंटरों में निवेश की आवश्यकता पर जोर दिया।

3. टाटा टेलीसर्विसेज

टाटा टेलीसर्विसेज, जिसने अपनी मोबाइल सेवा व्यवसाय को एयरटेल को बेच दिया है, को भी AGR बकाया का सामना करना पड़ रहा है। कंपनी ने 4,197 करोड़ रुपये का भुगतान किया है, लेकिन DoT का अनुमान 16,798 करोड़ रुपये है। इस फैसले ने टाटा टेलीसर्विसेज की स्थिति को और जटिल कर दिया है, क्योंकि कंपनी अब सक्रिय रूप से टेलीकॉम सेवाएं प्रदान नहीं करती।

सरकार और DoT की भूमिका

DoT ने AGR बकाया की गणना को लेकर सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में DoT को टेलीकॉम कंपनियों द्वारा स्व-मूल्यांकन की अनुमति देने के लिए फटकार लगाई थी, इसे “धोखा” करार दिया। कोर्ट ने कहा कि DoT द्वारा गणना की गई राशि अंतिम है और इसमें कोई पुनर्गणना नहीं होगी।

हालांकि, सरकार ने टेलीकॉम सेक्टर को कुछ राहत प्रदान करने की कोशिश की है। 2021 में, सरकार ने चार साल की मोहलत और 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की मंजूरी जैसे राहत पैकेज की घोषणा की थी। इसके अलावा, हाल ही में खबरें थीं कि सरकार AGR बकाया पर 50% ब्याज और 100% जुर्माने की छूट पर विचार कर रही है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने इन उम्मीदों को धूमिल कर दिया है।

टेलीकॉम सेक्टर पर व्यापक प्रभाव

AGR विवाद और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का टेलीकॉम सेक्टर पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यहाँ कुछ प्रमुख प्रभाव हैं:

 

वित्तीय दबाव: वोडाफोन आइडिया जैसे कर्ज में डूबे ऑपरेटरों के लिए यह फैसला अस्तित्व का सवाल बन गया है। अगर ये कंपनियां बकाया नहीं चुका पाईं, तो टेलीकॉम सेक्टर डुओपॉली (केवल दो प्रमुख खिलाड़ी – रिलायंस जियो और भारती एयरटेल) की ओर बढ़ सकता है।

 

निवेश में कमी: AGR बकाया के कारण टेलीकॉम कंपनियों को 5G नेटवर्क, फाइबर इंफ्रास्ट्रक्चर, और डेटा सेंटरों में निवेश करने में कठिनाई हो रही है। इससे भारत की डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं।

 

उपभोक्ता प्रभाव: अगर वोडाफोन आइडिया जैसे ऑपरेटर बाजार से बाहर हो जाते हैं, तो उपभोक्ताओं को कम विकल्प और उच्च कीमतों का सामना करना पड़ सकता है। पहले ही 2019 में टेलीकॉम कंपनियों ने AGR फैसले के बाद अपनी सेवाओं की कीमतों में 47% तक की वृद्धि की थी।

 

नौकरियों का नुकसान: वोडाफोन आइडिया ने चेतावनी दी है कि अगर उसे राहत नहीं मिली, तो लाखों नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं।

 

 

भविष्य की संभावनाएं

सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने टेलीकॉम कंपनियों के लिए कानूनी रास्ते लगभग बंद कर दिए हैं, लेकिन उनके पास अभी भी सरकार से राहत मांगने का विकल्प है। विशेषज्ञों का मानना है कि DoT और वित्त मंत्रालय नीतिगत समायोजन के माध्यम से भुगतान की समयसीमा बढ़ाने या ब्याज और जुर्माने में छूट प्रदान करने जैसे कदम उठा सकते हैं।

इसके अलावा, सरकार टेलीकॉम सेक्टर को टिकाऊ बनाने के लिए न्यूनतम मूल्य निर्धारण और लाइसेंस शुल्क में कमी जैसे उपायों पर विचार कर रही है। विदेशी निवेश की मंजूरी भी कंपनियों को कर्ज जुटाने में मदद कर सकती है।

निष्कर्ष

AGR विवाद भारतीय टेलीकॉम उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती रहा है, और सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला इस सेक्टर की वित्तीय और परिचालन संबंधी समस्याओं को और बढ़ा सकता है। वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल, और टाटा टेलीसर्विसेज जैसी कंपनियों को अब सरकार से राहत की उम्मीद है, ताकि वे अपने बकाया चुका सकें और बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहें। यह मुद्दा न केवल टेलीकॉम कंपनियों, बल्कि लाखों उपभोक्ताओं, कर्मचारियों, और भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है।

आने वाले समय में, सरकार और टेलीकॉम कंपनियों के बीच सहयोग इस सेक्टर के भविष्य को निर्धारित करेगा। क्या यह सेक्टर इस वित्तीय संकट से उबर पाएगा, या

भारत एक डुओपॉली की ओर बढ़ेगा? यह समय ही बताएगा।

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